Sunday, May 10, 2020

Return of the plaint






RETURN OF THE PLAINT - 

( वादपत्र का लौटाया जाना )       

(By- 1. Vandana Singh Katiyar & 

               2.Vijay Kumar Katiyar


 भूमिका -
              
 वादपत्र का लौटाया जाना एक आवश्यक अवधारणा है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश -7 नियम-10 में वादपत्र के लौटाए जाने का प्रावधान किया गया है। ऐसे वाद जो सदभाव पूर्वक संस्थित किये गए हैं , लेकिन गलत न्यायालय में दायर कर दिए गए हैं ,या दायर तो सही न्यायालय में किये गए थे लेकिन मूल्यांकन में अभिवृद्धि अथवा किसी विधि की वर्जना के कारण ऐसे न्यायालय को वाद के विचारण का क्षेत्राधिकार नहीं रह गया है तो ऐसे में उक्त वादपत्र वापस कर दिया जायेगा ,उस न्यायालय में दाखिल करनें के लिए जिसे ऐसे वाद के विचारण का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। इस प्रावधान के पीछे उद्देश्य यह है कि यथाशीघ्र ऐसे वादपत्र वापस कर दिए जाएँ जिससे पक्षकारों के साथ न्याय हो सके ,न्यायालय का समय बचे और यह राज्य के भी हित में है।

विधिक प्रावधान ---

             आदेश -7 नियम -10  सिविल प्रक्रिया संहिता यह प्रावधानित करती है कि  नियम 10 क  के उपबन्धों के अधीन रहते हुए वादपत्र वाद के किसी भी स्तर पर ,उस  न्यायालय में  उपस्थित किये  जाने के लिए लौटा दिया जायेगा जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था। 
        स्पष्टीकरण - शंकाओं को दूर करने के लिए इसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि अपील व पुनरीक्षण न्यायालय ,वाद में पारित डिक्री को अपास्त करनें के पश्चात ,इस नियम के अधीन वादपत्र के लौटाए जानें का निदेश दे सकेगा। 
          उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वादपत्र वाद के किसी भी प्रक्रम पर  लौटाया जा सकेगा ,इसका अभिप्राय यह है कि निर्णय पारित करनें के पूर्व किसी भी समय ऐसा वादपत्र लौटाया जा सकेगा ,अपीलीय व् निगरानी न्यायलय के आलोक में डिक्री अपास्त किये जानें के पश्चात वादपत्र लौटाया जा सकेगा। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि वादपत्र आखिर लौटाया क्यों जायेगा ? नियम 10 के पठन से यह स्पष्ट हो जाता है की वाद उस न्यायालय को लौटा दिया जायेगा जिसमें वाद संस्थित होना चाहिए था ,इसका अभिप्राय यह है कि किसी कारणवश वाद के विचराण का क्षेत्राधिकार उस न्यायालय को नहीं है जिसमें ऐसा वाद लम्बित है , ऐसा दो कारणों से हो सकता है। पहला कारण यह हो सकता है की उस न्यायालय को  स्थानीय क्षेत्राधिकार प्राप्त न हो तथा दूसरा कारण  यह हो सकता है की उस न्यायायलय को आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त न हो। ऐसा वादपत्र में संशोधन द्वारा अथवा किसी विधि में परिवर्तन के द्वारा संभव है। प्रतिमानस्वरूप यदि किसी वाद के मूल्यांकन में वृद्धि हो जाती है अथवा सद्भावपूर्ण तरीके से वाद गलत फोरम में दाखिल कर दिया जाता है। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Begum Sahiba vs Nawab Mohd . Mansur Ali-(2007)4 SCC 343 प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि इस स्तर पर वादपत्र तथा उसके अभिकथनों को देखा जाना है ,वादपत्र के प्रस्तरों का  संयुक्त पठन इस स्तर पर किया जायेगा तथा इस स्तर  वादपत्र का सार्थक पठन किया जायेगा न की औपचारिक पठन। यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि यदि किसी वाद में वाद का मूल्यांकन बढ़ता है तो पहले संशोधन प्रार्थनापत्र स्वीकार करना होगा ,लेकिन यहां यह ध्यान रहे न्याय शुल्क की मांग न्यायालय द्वारा नहीं की जाएगी बल्कि वादपत्र लौटा दिया जायेगा। 

 वादपत्र लौटाए जानें की प्रक्रिया-

                   आदेश-7 नियम-10 का उपनियम-2 जा0 दी0 वादपत्र लौटाए जाने  प्रक्रिया का प्रावधान करती है यथा-न्यायाधीश वादपत्र के लौटाए जाने पर ,उस पर उसके उपस्थित किये जाने व लौटाए जानें की तारीख ,उपस्थित करने वाले पक्षकार का नाम और उसके लौटाए जाने जे कारणों का संक्षिप्त कथन पृष्ठांकित करेगा। जज को यहां पर यह ध्यान रखना होगा कि वादपत्र के लौटाए जानें का स्पष्ट आदेश आदेशपत्रक पर पारित करना होगा इसके पश्चात वादपत्र पर उपनियम -2 के अनुरूप पृष्ठांकन करना होगा ,यह पृष्ठांकन आज्ञापक है।                          

क्या न्यायालय वादपत्र लौटाए जानें की पश्चात पक्षकारों की उपसंजाति के लिए तारीख नियत कर सकती है -

                   इसी आदेश के नियम -10 क व 10 ख सिविल प्रक्रिया संहिता में इसका प्रावधान किया गया है कि यदि न्यायालय की यह राय कि वादपत्र लौटाया जाना चाहिए तो वह अपनें विनिश्चय की सूचना वादी को देगा। यदि किसी वाद में प्रतिवादी उपस्थित आ गया है और वादी लिखित में न्यायालय से निवेदन करता है की वादपत्र लौटाए जानें के पश्चात उस न्यायालय में उपसंजात होने की तारीख नियत कर दे ,तो ऐसी स्थिति न्यायालय तारीख निश्चित करेगा । यहां यह ध्यान रहे यदि  वादी के आवेदन पर ऐसी तारीख नियत कर दी गयी है तो वादी वादपत्र लौटाए जाने के आदेश के विरूद्व अपील नहीं कर सकेगा साथ ही उस न्यायालय द्वारा जिसमें वादपत्र  लौटाए जाने के पश्चात संस्थित किया गया है , को प्रतिवादी को समन भेजे जाने की आवश्यकता नहीं है, यदि उक्त न्यायालय इसके वावजूद समन भेजना चाहता है तो उसको अपने आदेश में इसके कारण उल्लिखित करनें होंगे। दूसरी तरफ उक्त अधिकारिता अपीलीय व निगरानी न्यायालयों को भी है प्राप्त है। 

वादपत्र लौटाए जानें का परिणाम -

                                   जैसा कि विदित है ज्यों ही न्यायालय द्वारा वादपत्र लौटा दिया जाता है उस न्यायालय को जिसनें वादपत्र वापस किया है उसे कोई अधिकारिता ऐसे वादपत्र पर नहीं रह जाती है। जहाँ तक उस न्यायालय को जिसे ऐसा वादपत्र प्राप्त हुआ है उसे समस्त अधिकारिताएं वाद के विचारण की प्राप्त हो जाती हैं। वादविवाद का प्रश्न यह है कि क्या ऐसा न्यायालय वाद का निस्तारण नए तरीके से  करेगा अथवा उस स्तर से करेगा जिस स्तर से उसे वादपत्र प्राप्त हुआ है। इस सम्बन्ध में सामान्य सिद्धांत यह है कि वाद की परिसीमा ,मूल्यांकन तथा न्यायशुल्क के अधीन रहते हुए वाद का विचारण नए सिरे से करेगा। इसका अभिप्राय यह है कि धारा -14 म्याद अधिनियम का लाभ वादी को प्राप्त होगा तथा उसके द्वारा जो न्यायशुल्क उसके द्वारा अदा किया जा चुका उसे पुनः अदा नहीं करना होगा। अधोलिखित नजीरों में उक्त तथ्यों का समर्थन किया गया है --
  1. Ram Dutt Ramkissen Dass vs E.D.Sesson and co.-AIR 1929 PC 103
  2. Harshad Chiman Lal Modi vs D.L.F. Universal ltd-AIR 2006 SC 646.
  3. Amar Chand Inani vs Union of India-(1973)1 SCC 115.
  4. ONGC Ltd vs M/S Modern Construction and co.-civil appeal no-8957,8958/2013 SC, Judgement dated 07/10/2013
                      इस सम्बन्ध में एक भिन्न मत भी है जिसमें माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि न्याय के उद्देश्यों की विफलता को निवारित करने के लिए पश्चातवर्ती न्यायालय को उस स्तर से  विचारित किये जानें का जिस स्तर पर पूर्ववर्ती न्यायालय में वाद लंबित था , यदि कोई निर्देश किसी न्यायालय द्वारा इस बावत दिया गया है तो ऐसा आदेश उचित आदेश माना जायेगा। Joginder tuli vs Bhatia and another -(1997)1 SCC 502 में उक्त तथ्य का समर्थन किया गया है। इस प्रकरण में माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने यह अभिकथित किया है कि "Normaly when plaint is directed to be returned for presentation to the proper court perhaps it has to be start from the beginning but in this case since evidence was adduced by the parties ,the matter was tried accordingly, the high court has directed to proceed from that stage at which the suit stood transfered ,     thre is no illegality ."
क्या वादपत्र आंशिक रूप से लौटाया जा सकता है -                     
जैसा की विदित है कुछ वादों में वादहेतुकों व पक्षकारों के कुसंयोंजन के चलते वाद के कुछ हिस्से के विचारण का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है अथवा कुछ प्रतिवादियों के विरुद्व न्यायालय को विचारण का अधिकार नहीं होता है तो ऐसे में क्या संपूर्ण वादपत्र वापस कर दिया जायेगा अथवा आंशिक रूप से वाद वापस कर दिया जायेगा या न्यायालय के पास कोई और विकल्प है। यद्यपि कि इस सम्बन्ध में माननीय उच्च न्यायालयों में मतभेद रहे हैं। इस आलोक में दिल्ली उच्च न्यायालय तथा माननीय उच्चत्तम न्यायालय के अभिमत उचित प्रतीत होते हैं जिसमें यह मत व्यक्त किये गए है की वादपत्र के उतने भाग को कटे जानें का आदेश पारित किया जायेगा और तदनुसार वादपत्र के शेष भाग का विचारण विधिनुसार न्यायालय द्वारा किया जायेगा। ये नजीरें इस प्रकार हैं ---                  
1-State Bank vs Sanjiv Malik-AIR  1996 DEL. 284.  
2-Dodha House vs S.K. Maingi-AIR 2006 SC 730.                                      
जैसा कि विदित है आदेश- 6 नियम 16 जा0 दी0 में न्यायालय को अभिवचनों के काटे जानें का आदेश दिए जानें की अधिकारिता प्राप्त है। इस उपवन्ध के तहत न्यायालय प्लीडिंग को स्ट्राईक ऑफ करने का आदेश पारित कर सकता है।                                    
क्या लौटाए गए वादपत्र में संशोधन किये जा सकते हैं - 

यहां पर यह प्रश्न भी विचारणीय है कि क्या वादपत्र जो वापस कर दिया गया है उसमें वादपत्र पुनः संस्थित किये जाने के पूर्व संशोधन किये जा सकते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है अर्थात बिना न्यायालय की अनुज्ञा के पुनः वादपत्र दायर किये जानें के पूर्व वादी द्वारा संशोधन किये जा सकते हैं,लेकिन ऐसा वादपत्र नवीन वादपत्र माना जायेगा शिवाय परिसीमा विधि , आर्थिक क्षेत्राधिकार व  कोर्ट  शुल्क के   तथ्य के। माननीय उच्चत्तम न्यायालय नें Hanamanthappa vs Chandrashekharappa-AIR 1997 SC 1307. में उपर्युक्त तथ्यों का समर्थन किया है। और अभिकथित किया है कि "Plaintiff entitled to re-present plaint after its return,before proper court after necessary amendment without seeking court's permission for amendment ; plaint to be treated a fresh plaint ,subject to limitation,pecuniary jurisdiction and payment of court fee."                     
यहां यह ध्यान रखना है कि यदि प्रतिवादी उपस्थित आ चुका है और उसकी तरफ से लिखित दाखिल किया जा चुका है तो ऐसी स्थिति में प्रतिवादी के पास यह विकल्प रहेगा की वह चाहे तो उसी लिखित उत्तर पर बल दे या नया  उत्तर दाखिल करे।                               
क्या अस्थायी निषेधाज्ञा अथवा अन्य अंतरिम आदेश प्रभावी रहेंगे
 जैसा की यह स्थापित सिद्धांत है कई कि जब वादपत्र लौटा दिया जाता है तो उस वादपत्र का विचारण डी नोवो किया जायेगा इसका अभिप्राय यह है कि समस्त अंतरिम आदेश निष्प्रभावी हों जायेंगे जैसे ही वादपत्र वापस कर दिया जायेगा ,लेकिन यहां यह ध्यान रहे वादपत्र का पुनः संस्थित किया जाना परिसीमा अधिनियम , आर्थिक क्षेत्राधिकार तथा न्यायशुल्क की अदायगी के अधीन रहेगा अर्थात उक्त तीन तथ्यों को छोड़कर वादपत्र का पुनः विचारण DE NOVO किया जायेगा। इस संबंध में अधोलिखित नजीरें देखें -     
1. Harshad Chiman Lal Modi vs D.L.F. Universal ltd-AIR 2006 SC 646.
2. Amar Chand Inani vs Union of India-(1973)1 SCC 115.
3. ONGC Ltd vs M/S Modern Construction and co.-civil appeal no-8957,8958/2013 SC, Judgement dated 07/10/2013.

    धारा -24 सी पी सी बनाम आदेश -7 नियम -10 -       


    अब विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या उपर्युक्त दोनों प्रावधान विरोधाभाषी हैं अथवा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं ? धारा -24 माननीय उच्च न्यायालय व जिला न्यायालय को किसी भी प्रक्रम पर वाद के अंतरण की अधिकारिता प्रदान की गयी है। उक्त धारा-24 (5 ) यह प्रावधानित करता है कि कोई वाद या कार्यवाही उस न्यायालय से इस धारा के अधीन अंतरित की जा सकेगी जिसे उसका विचारण की अधिकारिता नहीं है। उदाहरणस्वरूप -एक वाद के विचारण का अधिकार एक न्यायालय  को प्राप्त नहीं है ,दूसरा न्यायालय जिसे विचारण की अधिकारिता है तथा उक्त न्यायालय उसी जनपद के उसी परिसर में स्थित है और जनपद न्यायालय के द्वारा इस धारा के अधीन अंतरण किया गया है तो इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है क्योंकि उक्त धारा का खण्ड-5 न्यायालय को अधिकार प्रदान करता है,लेकिन यदि उक्त न्यायालय जिसमें पुनः वादपत्र संस्थित किया जाना है जनपद के बाहर है या फोरम में समानता नहीं है तो वहां पर धारा -24 लागु नहीं होगी वरन आदेश -7 नियम 10 के प्रावधान लागु होंगे। इसलिए यहां स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि दोनों प्रावधानों में विरोधाभाष नहीं है बल्कि परस्पर पूरक हैं। 

    व्यावहारिक रूप से क्या लौटाया जायेगा -

                      एक व्यावहारिक समस्या आपके समक्ष यह आ सकती है की जब वादपत्र लौटाया जाये तो उसके साथ क्या -क्या लौटाया जाये। मूल वादपत्र ,शपथपत्र असल ,टी आई प्रार्थनापत्र शपथपत्र सहित ,बयान तहरीरी शपथपत्र सहित , टी आई के विरुद आपत्ति शपथपत्र सहित ,दोनों पक्षों के ओर से दाखिल समस्त दस्तावेज  प्रतियां वापस कर दी जाएँगी। यहाँ यह ध्यान रखना होगा की उक्त प्रपत्रों के साथ आदेशपत्रक की प्रमाणित प्रतियां भी भेजीं जाएँगी। इसका अभिप्राय यह है की आदेशपत्रक की असल प्रतियां नहीं भेजीं जाएँगी। यहाँ यह भी ध्यान रखना आवश्यक है की समस्त प्रपत्रों की छायाप्रतियां पत्रावली पर रखी जाएँगी और उक्त  पत्रावली नियमानुसार दाखिल अभिलेखगार की जाएगी।                      

    निष्कर्ष - 

    जैसा कि उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि आर्थिक या स्थानीय क्षेत्राधिकार के आभाव में वादपत्र लौटा दिया जायेगा ,जानबूझकर यहाँ पर विषयवस्तु के क्षेत्राधिकार की चर्चा नहीं की गयी है क्योंकि इसकी चर्चा वादपत्र के नामंजूर किये जानें वाले लेख में की जाएगी। 

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    Law of adverse possession

    Book Review

      Book Review By- Vijay Kumar Katiyar Addl. District & Sessions Judge Basti Uttar Pradesh, India Title of the book              ...