Sunday, May 17, 2020

Rejection of the plaint (order-7 rule-11 CPC)


 वादपत्र का नामंजूर किया जाना 

                               (Written By)

Vandana Singh Katiyar  Vijay Kumar Katiyar
Advocate & Researcher     Sr. Civil Judge

भूमिका-                                                                                                                                            

भारत एक विकासशील देश है तथा एक नवीन लोकतंत्र है। भारत एक बहुभाषी तथा संस्कृति की विविधता वाला देश है।  भारत जनसंख्या के हिसाब से विश्व में दूसरा सबसे बड़ा देश है। यद्यपि कि भारत में विधि का शासन है लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता की हम अभी संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं। आर्थिक ,सामाजिक व राजनैतिक विषमता होनें  के वजह से भारत के निवासियों में विरोधाभाष भी बहुत हैं ,इसके कारण भारत में मुकदमेंबाजी अपनें चरम पर है ,इसी वजह से बहुत से फर्जी मुकदमें भी दायर किये जाते हैं और बहुत बड़ी संख्या में ऐसे मुकदमें भारत के न्यायालयों में विचाराधीन हैं। फर्जी मुकदमों पर विराम लगाया जा सके इसलिए सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश -7 नियम -11 में प्रारम्भिक स्तर पर ही वादपत्रों के नामंजूर किये जाने का प्रावधान किया गया है। यदि बोगस मुकदमेंबाजी अपनें प्रारंभिक स्तर पर समाप्त हो जाएगी तो इससे न्यायालय का समय भी बचेगा ,धन की अपव्यता पर भी विराम लगेगा तथा यह राज्य के भी हित में है की उसके संसाधनों की बर्बादी रोकी जा सके। 

विधिक प्रावधान -

                   आदेश -7 नियम -11 सिविल प्रक्रिया संहिता में यह प्रावधानित किया गया है कि वादपत्र निम्न लिखित दशाओं में नामंजूर कर दिया जायेगा -
(a ) जहाँ वह वादहेतुक प्रकट नहीं करता। 
(b ) जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है और वादी मूल्याङ्कन को ठीक करने के लिए न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने नियत किया है ,ऐसा करने में असफल रहता है। 
(c ) जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्याङ्कन ठीक है किन्तु वादपत्र अपर्याप्त स्टाम्प-पत्र पर लिखा गया है और वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र देने के लिए न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर ,जो न्यायालय ने नियत किया है ,ऐसा करनें में असफल रहता है। 
(d ) जहाँ वादपत्र में के कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है।
(e ) जहां यह दो प्रतियों में दाखिल नहीं किया गया है। 
(f ) जहाँ वादी नियम -9 के प्रावधानों का अनुपालन करने में असफल रहता है। 
            उपर्युक्त प्रावधान के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि कुल 6 शीर्षक हैं जिनके आधार पर वादपत्र नामंजूर किया जा सकता है ,लेकिन यहां यह ध्यान रहे उपर्युक्त शीर्षक केवल मोटे तौर पर दिए गए हैं। इसका अभिप्राय यह है कि इन शीर्षकों के अंदर कई सारे उपशीर्षक भी समाहित है। यहां यह भी ध्यान रखना होगा की उपर्युक्त वर्णित शीर्षकों के आलावा कई अन्य आधार भी वादपत्र नामंजूर किये जाने के हो सकते हैं ,लेकिन ये आधार वही हो सकते हैं जो समय -समय पर माननीय अभिलेख न्यायालयों के द्वारा उदघोषित किये गए हैं। अभिलेख न्यायालयों से आशय माननीय उच्चत्तम न्यायालय व माननीय उच्च न्यायालयों से है। 
                  अब यह विचारणीय प्रश्न है कि वादपत्र कैसे नामंजूर किया जाए ,इसके लिए समस्त आधारों का विस्तृत विश्लेषण आवश्यक है। समस्त आधारों का विश्लेषण अधोलिखित प्रकार से किया जा रहा है -

1 - वाद-हेतुक का प्रकट न होना -

                   वादपत्र को नामंजूर किये जानें का प्रथम आधार वाद -हेतुक का वादपत्र में अप्रकटीकरण है। इसका अभिप्राय यह है कि यदि वादपत्र में वाद -हेतुक का प्रकटीकरण नहीं है तो वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। एक उदहारण के द्वारा इसे समझनें का प्रयास करते हैं , माना  कि एक निषेधाज्ञा वाद में प्रतिवादी द्वारा इस प्रावधान के अधीन प्रेषित अपनें आवेदन में यह आधार लिया जाता है कि विवादित भूमि बंजर खाते में दर्ज है ,वादी विवादित सम्पत्ति का स्वामी नहीं है और न ही उसका कब्जा-दखल विवादित भूमि पर है तथा उसे न तो वाद कारण प्राप्त है और न ही उसे वाद संस्थित करने का अधिकार प्राप्त है। क्या उपर्युक्त आधारों पर, इस प्रावधान के तहत वादी का वाद नामंजूर किया जा सकता है?उत्तर नकारत्मक होगा क्योंकि उक्त आधारों पर वादी का वादपत्र नामंजूर नहीं किया जा सकता है। इसके दो कारण प्रथम कारण यह है कि वादी विवादित संपत्ति का स्वामी है या नहीं तथा उसका उस संपत्ति पर कब्जा-दखल है या नहीं यह साक्ष्य के उपरांत ही न्यायनिर्णयन के आधार पर ही तय किया जा सकता है। इसी प्रकार वादी को वाद दायर करनें का अधिकार अर्थात वाद-हेतुक प्राप्त है या नहीं यह साक्ष्य की विषयवस्तु है। दूसरा कारण यह है कि उक्त प्रावधान के तहत वाद-हेतुक का प्रकटीकरण वादपत्र में न होना वादपत्र नामंजूर किये जाने का आधार है। यहाँ यह विचारणीय प्रश्न है कि वाद-हेतुक  का प्रकट न होना तथा वाद दायर करनें का कारण न होना दोनों भिन्न-भिन्न संकल्पनाएँ है। ऐसे में यदि वादपत्र में वाद-हेतुक प्रकट नहीं हो रहा है तो वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। इसका अभिप्राय यह भी है कि वादी को वाद-हेतुक न होना अर्थात वाद दायर करने का अधिकार न होना वादपत्र नामंजूर किये जाने का आधार नहीं होगा।      
              यह तथ्य भी मस्तिष्क में रखना होगा की इस स्तर पर केवल वादपत्र के अभिकथनों को देखा जाना है ,वादपत्र के समस्त प्रस्तरों का संयुक्त पठन करना है अर्थात वादपत्र के किसी एक प्रस्तर के आधार पर वादपत्र नामंजूर नहीं किया जायेगा ,इसका अभिप्राय यह है की सम्पूर्ण वादपत्र को समग्रता से पढ़ा जायेगा। लेकिन यदि वाद कतिपय दस्तावेजों पर आधारित है तो ऐसे दस्तावेज विचार में लिए जा सकते हैं। यहाँ यह तथ्य भी ध्यान रखना होगा कि प्रतिवादी की प्रतिरक्षा को विचार में नहीं लिया जा सकता। प्रतिवादी की प्रतिरक्षा से अभिप्राय यह है कि उसका लिखित उत्तर तथा उसके दस्तावेज विचार में नहीं लिए जायेंगे। S.N.P. Shiping Services Private Ltd vs World Tanker Career Corporaioin -AIR 2000 Bombay.में माननीय  बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि यदि वाद दस्तावेज पर आधारित है तो ऐसे दस्तावेजों को भी विचार में लिया जा सकता है। इस स्तर पर आदेश-10 नियम-2 सिविल प्रक्रिया संहिता के तहत वादी या उसके अधिवक्ता की परीक्षा की जा सकती है। इसका अभिप्राय यह है कि उक्त बयान भी वादपत्र नामंजूर करने के लिए विचार में लिया जा सकता है। उक्त प्रावधान का एक औजार के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। 
                          इस स्तर पर केवल वादपत्र के अभिकथनों को देखा जाना है ,वादपत्र के समस्त प्रस्तरों का संयुक्त पठन करना है अर्थात वादपत्र के किसी एक प्रस्तर के आधार पर वादपत्र नामंजूर नहीं किया जायेगा ,इसका अभिप्राय यह है की सम्पूर्ण वादपत्र को समग्रता से पढ़ा जायेगा। प्रतिवादी के लिखित उत्तर तथा उसके दस्तावेजों को विचार में नहीं लिया जायेगा। उपर्युक्त तथ्यों का समर्थन अधोलिखित नजीरों में किया गया है -
1- T. Arivandandam vs T.V. Satyapal -1977(3)ALR 704 SC.
2- Popat and Kotecha property vs    State Bank of India Staff Association-(2005)7 SCC 510.
                व्यावहारिक रूप से इस तथ्य की जानकारी करना की वाद-हेतुक प्रकट हो रहे है या नहीं बेहद कठिन कार्य है। आइये एक उदहारण से समझनें का प्रयास करते है। वादी द्वारा एक वाद इस आशय का सन 2005 में यह कहते हुए संस्थित किया जाता है कि वादी के पिता ने प्रतिवादी के हक में एक वसीयत 1975 में की थी,जिसके आधार पर प्रतिवादी ने आजतक दाखिल-ख़ारिज नहीं कराया है, विवादित संपत्ति पर वादी स्वामी की हैसियत से लगातार काबिज-दाखिल चला आ रहा है और  द्वारा  के निरस्तीकरण का अनुतोष नहीं माँगा जाता है वरन यह अनुतोष माँगा जाता है कि यह घोषित कर दिया जाय की प्रतिवादी का उक्त वसीयत के आधार पर कोई वास्ता व सरोकार विवादित संपत्ति से नहीं है तथा प्रतिवादी को निषेधित कर दिया जाय की वह विवादित संपत्ति पर कब्जा करने से बाज रहे। अब आपके सामने प्रश्न यह है कि क्या उक्त तथ्यों के आधार पर वादपत्र नामंजूर किया जा सकता है ? इसका  सकारात्मक रूप से दिया जा सकता है क्योंकि यहाँ पर यह ध्यान रखना है कि वादपत्र का अर्थपूर्ण पठन किया जाना है ,इसका अभिप्राय यह है कि वादपत्र का पठन औपचारिक रूप से नहीं किया जायह ना है। यह भी विचारणीय प्रश्न है कि यदि वादपत्र का प्रारूपण चतुरता पूर्वक किया गया है तो ऐसा अवगुंठन (पर्दा )उठा दिया जायेगा और वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। उपर्युक्त उदाहरण में क्लीवर ड्राफ्टिंग करते हुए वसीयत की मन्सूखी के स्थान पर उद्घोषणा व व्यादेश के अनुतोष हेतु वाद योजित किया गया है ऐसा परिसीमा से बचने के लिए फर्जी वाद-हेतुक के आधार पर उक्त वाद संस्थित किया गया है,ऐसे में वादपत्र का नामंजूर किया जाना उक्त परिस्थितियों में न्यायोचित होगा। माननीय उच्चत्तम न्यायालय नें T. Arivandandam vs T.V. Satyapal -1977(3)ALR 704 SC.के प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि "If on a meaningful-not formal reading of the plaint it is manifestly vexatious and meritless,in since of not disclosing a clear right to sue,be should exercese his power under order-7 rule-11 cpc ,taking case to see that the ground mentioned is fulfilled and if clever drafting has created the illusion of a cause of action ,nip it in the bud at the first hearing by examining the party by this bogus litigation can be shot down at the earlirst stage."
            अधोलिखित नजीरों में भी उपर्युक्त अभिमत का समर्थन किया गया है-
1-Ram Singh vs Gram Panchayat - (1986)4 SCC 364.
2-Sopan sukhdeo sable vs Ass . Commissioner -(2004)3 SCC 137.
3-Madanuri Sri Rama Chandra Murthy vs Syed Jalal -(2017)13 SCC 174.
4-Raghwendra Sharan Singh vs Ram Prasanna Singh -Civil appeal No- 2960/19 Judgement dated -01/03/2019.
               जहाँ पर वादपत्र के अभिकथनों से यह प्रतीत होता है कि वादी को वाद-हेतुक प्राप्त है और वाद-हेतुक वादपत्र में प्रकट भी हो रहा है ,तो केवल इस आधार पर वादपत्र नामंजूर नहीं किया जा सकता की प्रतिवादी के विरूद्व अनुतोष की मांग नहीं की गयी है। माननीय बॉम्बे उच्च न्यायालय नें Eagle copters Ltd vs Azal Azerbaijan Aviation Ltd -AIR 2002 Bom 284.में उक्त मत का समर्थन किया है। 
                    उक्त परस्थिति में उचित यह होगा की वादी को वादपत्र में संशोधन की अनुज्ञा प्रदान की जाय। 
            जहाँ परस्थिति ऐसी है कि वादपत्र में वाद-हेतुक प्रकट नहीं हो रहा है और वाद की वापसी के आवेदन को वादी पेश करता है तथा उक्त आवेदन ओर बल भी देता है तो वादपत्र वापस कर दिया जायेगा। दूसरी तरफ यदि वाद वापसी का आवेदन तो प्रस्तुत किया जाता है,लेकिन उस पर बल नहीं दिया जाता है और वादपत्र में वादहेतुक प्रकट नहीं हो रहा है तो ऐसे में वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। 
                        जहाँ पक्षकारों को सुननें के पश्चात विचारण न्यायालय द्वारा वादपत्र नामंजूर कर दिया जाता है। प्रतिवादी उक्त आदेश के विरूद्व अपील संस्थित करता है और अपीलीय न्यायालय से वाद ख़ारिज किये जाने की प्रार्थना करता है, अपीलीय न्यायालय सुनने की पश्चात् अपील स्वीकार कर वाद ख़ारिज कर देता है। अपीलीय न्यायालय का उक्त आदेश उचित नहीं कहा जायेगा क्योंकि अपीलीय न्यायालय को वाद ख़ारिज करनें कि अधिकारिता नहीं है ,उचित यह होगा कि उचित निर्देशों सहित वाद  विचारण न्यायालय को रिमाण्ड कर दिया जाना चाहिए। माननीय पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय नें Tak Chand vs Danno Devi- AIR 1983 p&h 199 . प्रकरण में उक्त तथ्यों का समर्थन किया है। 

2 - वादपत्र का अल्पमूल्यांकित होना -

           सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश-7 नियम-11 (b ) में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि वादी का वादपत्र अल्पमूल्यांकित है तथा न्यायालय द्वारा दिए गए समय पर वादी दिए गए समय पर मूल्यांकन को दुरुस्त करनें में असफल  रहता है,तो न्यायालय ऐसे वादपत्र को नामंजूर कर देगा। यहां यह ध्यान रहे कि अल्पमूल्यांकन के आधार पर प्रथमदृष्टया वादपत्र नामंजूर नहीं किया जायेगा बल्कि उसे दुरुस्त करने का उचित अवसर प्रदान किया जाएगा। यदि दिए गए समय पर वादी असफल रहता है तो वादपत्र नामंजूर किया जायेगा। यहां यह भी ध्यान रखना की इस स्तर पर केवल वादपत्र के अभिकथनों को देखा जायेगा। इस सम्बन्ध में निम्न नजीरें देखिये-

1-State of Orissa vs Klockner & Co- AIR 1996 SC 2140.

2-Brett & Co.vs Ganesh Property -AIR 1998 SC 3085.

3-जहाँ वादपत्र अपर्याप्त स्टाम्प पर लिखा गया है -

              सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश-7 नियम-11 (c) में यह प्रावधानित किया गया है कि वाद का मूल्याङ्कन तो उचित है ,लेकिन वादपत्र अपर्याप्त स्टाम्प पर लिखा गया है और दिए गए समय पर वादी कमी को दूर नहीं करता है तो उसका वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। इसका अभिप्राय यह है कि यदि वादी ने न्यायशुल्क पर्याप्त अदा नहीं किया है और न्यायालय द्वारा दिए गए समय पर न्यायशुल्क अदा करने में असफल रहता है तो ऐसी परस्थिति में वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। लेकिन यहाँ यह ध्यान रहे कि न्यायालय धारा-149 जा0 दी0 के तहत न्यायशुल्क अदा करने के लिए समय प्रदान कर सकता है। एक समस्या आपके सामने यह आ सकती है धारा -149 के तहत जिस दिन आप न्यायशुल्क अदा करने के लिए समय प्रदान कर रहे हैं, उसी दिन वाद की म्याद समाप्त हो रही है और पश्चातवर्ती अनुक्रम में दिए गए समय पर न्यायशुल्क अदा कर दिया जाता है तो यह माना जायेगा की वाद परिसीमा के अंदर दायर किया गया है। माननीय कलकत्ता न्यायालय ने Surendra Prasad vs Atabuddin-AIR 1922 Cal 234 प्रकरण में उक्त तथ्य का समर्थन किया है।यहाँ एक विकल्प वादी के पास यह भी है कि वह आदेश-33 के तहत अकिंचन के रूप में वाद संचालन की अनुज्ञा सक्षम न्यायालय से प्राप्त कर सकता है। 

4 - जब वाद विधि से वर्जित हो - 

                इसी आदेश में यह प्रावधान किया गया है कि यदि वादपत्र के कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि द्वारा वर्जित है तो वादी का वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। इस प्रावधान के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यह एक व्यापक आधार है, जिसे धारा-9 जा0दी0 के साथ पढ़ना चाहिए ,उक्त धारा के अनुसार दीवानी प्रकृति के प्रत्येक वाद के विचारण का क्षेत्राधिकार दीवानी न्यायालय को प्राप्त है, जब तक कि ऐसा वाद अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से वर्जित न हो। इस प्रावधान के लिए भी यह आवश्यक है कि यदि वादपत्र अभिव्यक्त या विवक्षित रूप से किसी विधि से वर्जित है तो ऐसा वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। लेकिन यहाँ यह ध्यान रहे कि इस प्रावधान के तहत वादपत्र तभी नामंजूर किया जा सकता है जब वादपत्र के अभिकथनों से ऐसा प्रतीत हो। इसका अभिप्राय यह है कि इस स्तर पर केवल वादपत्र के अभिकथनों को देखा जायेगा ,यदि वादपत्र किसी दस्तावेज पर आधारित है तो ऐसा दस्तावेज भी विचार में लिया जा सकता है। यहाँ यह भी ध्यान रहे यदि आदेश-10 नियम-2 जा0 दी0 के तहत वादी की परीक्षा की गयी है तो ऐसी परीक्षा में किये गए कथन भी विचार में लिए जा सकते हैं। इस स्तर परिवादी का  लिखित उत्तर व उसकी ओर से प्रस्तुत दस्तावेज विचार में नहीं लिए जा सकते हैं। 

               एक समस्या आपके सामने यह आ सकती है किसी विषयवस्तु के संबंध में कोई वाद चतुरतापूर्ण प्रारूपण के साथ जानबूझकर किसी विशेष न्यायालय में दायर किया गया है और वादपत्र के अभिकथनों से ऐसा परिलक्षित होता है ऐसा सद्भाव पूर्वक नहीं किया गया है, तो ऐसा वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। लेकिन यदि वादपत्र सद्भावपूर्वक योजित किया गया है और न्यायालय को क्षेत्राधिकार नहीं है तो उचित यह होगा की ऐसा वादपत्र नामंजूर किये जाने के स्थान पर लौटा दिया जाना चाहिए। 

             यह भी विचारणीय प्रश्न है कि इस स्तर पर वादपत्र का अर्थपूर्ण पठन किया जाना चाहिए, साथ ही वादपत्र के सम्पूर्ण प्रस्तरों को विचार मे लिया जाना चाहिए, किसी एक प्रस्तर के आधार पर निष्कर्ष नहीं निकला जाना चाहिए। T. Arivandandam vs T.V. Satyapal -1977(3)ALR 704 SC.के प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि "If on a meaningful-not formal reading of the plaint it is manifestly vexatious and meritless,in since of not disclosing a clear right to sue, be should exercise his power under order-7 rule-11 CPC, taking the case to see that the ground mentioned is fulfilled and if clever drafting has created the illusion of a cause of action, nip it in the bud at the first hearing by examining the party by this bogus litigation can be shot down at the earliest stage."

          यदि वादपत्र के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि वादपत्र परिसीमा से बाधित है तो वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा क्योंकि परिसीमा की वर्जना उक्त प्रावधान की परिधि में आती है। अधोलिखित नजीरों में इसका समर्थन किया गया है -

1- T. Arivandandam vs T.V. Satyapal -1977(3)ALR 704 SC.

2- Popat and Kotecha property vs    State Bank of India Staff association-(2005)7 SCC 510.

3- Hardesh ores (p)Ltd vs M/S Hede & Co-2007 (103) RD 371 SC.

4- Maqbool Ahmad Khan vs Bhama Devi -2013 (121) RD 70 All.

5- N V Srinivasa Murthy and others vs Marriyamma -2005 (99) RD 395 SC.

6- Ram ji Pandey & others vs Arya Ayurvedic Trust Banaras -2020 (146) RD 621 All.

            लेकिन यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि यदि परिसीमा का आधार तथ्य व विधि का मिलाजुला प्रश्न है तो वादपत्र नामंजूर नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि इसका न्यायनिर्णयन गुण-दोष पर ही संभव है। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Balsaria Construction (p)Ltd vs Hanuman Seva Trust & others -(2006)5 SCC 658 में उपर्युक्त तथ्यों का समर्थन किया है। 

         विधि की कई सारी अन्य वर्जनाएं भी है सुविधा के लिए जिनकी सूची निम्न प्रकार से दी जा रही है- 

1-Section-34, Foreign Exchange Management Act.(FEMA)
2-Section-61, Information Technology Act.
3-Section-21,22 ,Legal Services Authority Act.
4-Section-24,Minimum wages Act-1948.
5-Section-94,175,167-Motor vehicle Act.
6-Section-68 NDPS Act.
7-Section-12,National Commission for minorities Education Act.
8-Section-22 Payment of Bonus Act-1958
9-Section-22 Payment of wages Act.
10-Section-4,Places of Worship (special provision)act-1991.
11-Section-27,Indian Post Office Act- 1898
12-Section- 13 Prohibition Of Child Marriage-2006.
13-Section-28 A T Act-1985.
14-Section-48 Advocate Act-1961.
15-Section-46 Air Pollution (prevention and control ) Act-1981.
16-Section-25,Bounded Labour Act-1976.
17-Section-7f Chalchitra adhiniyam.
18-Section-14, Citizen Ship Act-1955.
19-Section-9,Commission of Inquiry Act.
20-Section-28,Consumer Protection Act-1986.
21-Section-55,56,57,58-Copy Rights Act-1957.
22-Section-4, Divorce Act-1869.
23-Section-145,154,155- Electicity Act-2003.
24-Section-10,164- Telegraph Act.
25-Section-75, State Employee Insurance Act.
26-Section-22,Environment Protection Act-1986.
27-Section-7,8 -Family Court Act-1984.
28-Section-16-Provincial Small Causes Courts Act-1887.
29-Section-6,Public liability Insurance Act-1991.
30-Section-4,5,5A,15- UP Public Premises(Eviction & occupies ) Act-1972.
31-Section-17,18-Recovery Of Debt , Banks and Financial Institutions Act -1996.
32-Section-19,Requisition & Acquisition of Immovable property Act-1952.
33-Section-23, R T I Act-2005.
34-Section-134 Trade Marks Act.
35-Section-18 Trade Union Act-1926.
36-Section-36,37,47-Unlawfull Activities prevention Act-1957.
37-Section-85,Waqf Act-1995.
38-Section-58,Water pollution Act-1974.
39-Section-19 Workmen Compensation Act-1923.
40-Section-16, UP Accommodation Requisition Act-1947.
41-Section-6, Administrator Generals Act.
42-Section-230,271 Agra Tenancy Act
43-Section-15,16,17-UP Agriculture Credit Act-1973.
44-Section-16,17 UP Co-operative Society Act.
45-Section-38, UP Agricultural Income Tax Act.
46-Section-33,42 UP Agriculturalist Relief Act.
47-Section-30 UP Bhumi avam sankarshan adhiniyam.
48-Section-6,16-UP Cattle Purchase Tax Act-1976.
49-Section-13, UP Control of Gundas Act-1970.
50-Section-31, UP Debt Relief Act.
51-Section-78, UP Excise Act-1910.
52-Section-4,6,8 9 10,15-UP Fire Prevention and Fire Safety Act-2005.
53-Section-12,15-UP Flood Emergency powers Act-1951.
54-Section-18,19 UP Nursery Act.
55-Section-15, UP Local Funds Audit Act.
56-Section-25, UP Sugarcane food and purchase Regulation Act-1953.
57-Section-7,11.12 UP Imposition of Ceiling & Land Holding Act.
58-Section-203 to 207,& 233 UP Land Revenue Act-1901.
59-Section-14, UP Local Rates Act-1914.
60-Section-4,5,49-UP Consolidation of Holdings Act.
61-Section-6,UP Industrial Dispute Act-1947.
62-Section-13, UP Housing Industrial Dispute Act.
63-Section-22, UP Intermediate Education Act-1921.
64-Section-12, UP Jr H. School Payment of salary of Teachers & other Employee Act-1978.
65-Section-12,106, UP Panchayat Raj Act-1947.
66-Section-28, UP Madical Act-1917.
67-Section-44, UP Medicine Act-1939.
68-Section-22, UP Minor Irrigation Work Act.
69-Section-8, UP Ministries, Ministers and Legislative  Publications of assets & Liability Act-1975.
70-Section-164, UP Municipalities Act-1916.
71-Section-49,226,371,372,378,381,568,572- UP Nagar Mahapalika Adhiniyam-1959.
72-Section-19,67- Northern India Canal & Drainage Act.
73-Section-13, UP Objectionable Advertiesment Control Act-1948.
74-Section-68,UP Private Forest Act.
75-Section-20, UP Protection of Trees (Rural & Hills area ) Act-1976.
76-Section-3 UP Public Money Recovery Act-1972.
77-Section-6, UP Public Service Tribunals Act.
78-Section-35,42- UP Regulation of Cold Storage Act-1976.
79-Section-17,18-UP Regulation of Money Lending Act-1976.
80-Section-11,UP Requisition of Motor Vehicle Emergency Power Act.
81-Section-14,UP Rural Development Requisition of Land Act.
82-Section-39,40,41-UP Rural Housing Board Act.
83-Section-14, UP Special Powers Act-1932.
84-Section-14,UP Storage Requisition Act-1955.
85-Section-14,UP Sugar Undertaking Act.
86-Section-69,UP State University Act.
87-Section-78,82 UP Urban Area Zamidari Abolition & Land Reforms Act-1957.
88-Section-229B,331,331A,333 UPZALR Act-1951.
89-Section-27,37,41- UP Urban Planing & Development Act-1973.
90-Section-28, UP Veterinary Counsel Act-1947.
91-Section-10,Carriers Act-1865.
92-Section- 16,22- Carrier By Road Act-2007.
93-Section-80, Civil Procedure code-1907.
94-Section-34, UP Krishi utpadan Mandi Adhiniyam-1964.
95-Section-52, Land Acquisition Act-1894.
96-Section-12B, Essential commodities Act.
97-Section-257,UP Khetra samiti avam jila parishad adhiniyam-1961.
98-Section-97 UP Town Improvement Act.
99-Section-13, SERFSAI Act.
100-Section-20A Specific Relief Act-1963.
101- Order-39 rule-2 CPC  UP State Amendment.
102- Section-206,UP Revenue Code-2006.
103- Section-69, Partnership Act-1932.

5 - वादपत्र का दो प्रतियों में न होना -

                     वादपत्र  यदि  दो प्रतियों में प्रस्तुत नहीं किया है तो वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। लेकिन यहाँ यह ध्यान रहे कि बिना अवसर दिए तत्काल वादपत्र नामंजूर नहीं किया जायेगा। इसका अभिप्राय यह है कि यदि वादपत्र दो प्रतियों में प्रस्तुत नहीं किया गया है तो पहले वादी को अवसर प्रदान किया जायेगा और यदि प्रदत्त समय में वादी न्यायालय आदेश का अनुपालन करनें में विफल रहता है तब वादी का वादपत्र नामंजूर किया जायेगा। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Salem Advocate Bar Association Tamilnadu vs Union Of India-AIR 2003 SC 189 . प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि यदि वादपत्र दो प्रतियों में नहीं है तो न्यायालय त्रुटियों के निवारण का अवसर दिए बिना वादपत्र नामंजूर नहीं करेगा। 

6 - नियम-9 के उपबंधों का पालन न करना -

                     सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश-7 नियम-11(f ) में यह प्रावधानित किया गया है कि यदि वादी नियम-9 के प्रावधानों का पालन करनें में असफल रहता है तो वादी का वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। आदेश -7  नियम-9 जाo दीo यह प्रावधानित करता है की जहाँ न्यायालय यह आदेश देता है कि समन की तामील प्रतिवादियों पर आदेश-5 नियम-9 में उपबंधित रीति से किया जाय , वहां वह वादी को निर्देश देगा कि वह वादपत्र की सादा कागज पर उतनीं प्रतियां जितने की प्रतिवादी हैं ,ऐसे आदेश के सात दिन के भीतर प्रतिवादियों पर समन की तामीली के लिए अपेक्षित शुल्क सहित उपस्थित करेगा। 
                   लेकिन यहाँ यह ध्यान रहे कि सारभूत न्याय के सिद्धांत को प्रक्रियात्मक न्याय के सिद्धांत पर वरीयता प्रदान की जनि चाहिए। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए तत्काल वादपत्र इस प्रावधान के तहत नामंजूर नहीं किया जाना चाहिए बलिक उचित यह होगा की पहले वादी को त्रुटि निवारित करने का अवसर प्रदान किया जाय और यदि फिर भी वादी न्यायालय आदेश का अनुपालन करनें में असफल रहता है तब उसका वादपत्र नामंजूर कर दिया जायेगा। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Salem Advocate Bar Association Tamilnadu vs Union Of India-AIR 2003 SC 189 . प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि इस प्रावधान के तहत त्रुटियों के निवारण का अवसर दिए बिना वादपत्र नामंजूर नहीं किया जाना चाहिए।  

7- वादपत्र ख़ारिज किये जानें के अन्य आधार -

                       जैसा कि विदित है की आदेश-7 नियम-11 में वर्णित आधार अपने आप में परिपूर्ण नहीं हैं। समय-समय पर माननीय अभिलेख न्यायालयों नें वादपत्र के ख़ारिज किये जानें के अन्य आधार भी बताये हैं।                                     Sopan Sukhdeo Sable vs Ass . Commissiner -(2004)3 SCC 137. प्रकरण में माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि "If the court is prima facie satisfied that the suit is an abuse of the process of the court it can make a searching examination of the party undet order -10 and then exercise the power under order-7 rule-11 cpc."
                 माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय Atul kumar Singh vs Jalveen Rosha -AIR 2000 Del 38. में यह कहा है कि NI Act के तहत चेक बाउंस का आपराधिक वाद संस्थित करनें पश्चात् घोषणा व स्थाई निषेधाज्ञा का वाद योजित किया जाता है तो उक्त वाद प्रक्रिया का दुरूपयोग माना  जायेगा और वादपत्र ख़ारिज  दिया जायेगा। 
                  माननीय  हैदराबाद उच्च न्यायालय ने Radha Kishen vs Wali Mohomed-AIR 1956 Hyd 133 .में यह कहा है की यदि  वादपत्र अप्राधिकृत व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षरित है तो वादपत्र ख़ारिज कर दिया जायेगा। 
               यहाँ यह ध्यान रखना है की यदि वादी का वाद दुरभिसंधि पर आधारित है तो यह वादपत्र ख़ारिज किये जाने का आधार नहीं होगा। माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने Cambridge Solutions Ltd vs Global Software-AIR 2009 Mad 74. प्रकरण में उपर्युक्त कथनों का समर्थन किया है।  
                    यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा की यह आधार की वादी की प्रस्तुत वाद में सफलता की सम्भावना नहीं है यह वादपत्र ख़ारिज करनें  नहीं होगा। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Mayar (HK) Ltd vs Owners and Parties Vessel MV Fortune - AIR 2006 SC 1828. प्रकरण में उक्त तथ्यों का समर्थन किया है।

इस प्रावधान की प्रकृति व विस्तार क्या है - 

                एक तरफ यह प्रावधान प्रतिवादी को एक स्वतंत्र अवसर प्रदान करता है की वह वाद के गुण-दोष पर निस्तारण के पूर्व वाद की पोषणीयता को चुनौती दे सके। दूसरी तरफ इस प्रावधान में प्रयुक्त "Shall" शब्द न्यायालय के ऊपर एक विधिक दायित्व अधिरोपित करता है की यदि वादपत्र के अभिकथनों से ऐसा प्रतीत होता है की वादपत्र नामंजूर कर दिया जाना चाहिए ,तो न्यायालय ऐसे वादपत्र को नामंजूर कर देगा,न्यायालय इस प्रावधान का प्रयोग स्वतः भी कर सकता है। माननीय इलाहबाद उच्च न्यायालय ने Umesh vs Administrator General -1999 AIHC 2414 All.प्रकरण में यह अभिकथित कि है कि यद्यपि कि प्रतिवादी के द्वारा कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है ,विवाद्यक भी विरचित नहीं हुए हैं तब भी वाद के किसी भी स्तर पर वादपत्र नामंजूर किया जा सकता है। Popat and Kotecha property vs State Bank of India Staff association-(2005)7 SCC 510.  प्रकरण में माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने यह यह अभिकथित किया है की वादपत्र किसी भी स्तर पर नामंजूर किया जा सकता है। 

                  यहाँ यह भी ध्यान रखना है की यदि प्रतिवादी की ओर से वादपत्र नामंजूर किये जाने का आवेदन प्रस्तुत कर दिया गया है तो सबसे पहले उक्त आवेदन का निस्तारण किया जायेगा ,न्यायालय इसे इसे टाल नहीं सकता है और न ही इस आशय का आदेश निर्गत किया जा सकता है की प्रतिवादी पहले बयान तहरीरी दाखिल करे। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Salim Bhai vs State Of Maharashtra -AIR 2003 SC 759. जहाँ वादपत्र के ख़ारिज किये जानें का आवेदन किया गया है वहां उस पर निर्णय वादपत्र में दिए गए प्रकथन के आधार पर किया जायेगा ,उसके लिए प्रतिवादी द्वारा लिखित कथन का दाखिल किया जाना अनिवार्य नहीं है।                                           यहाँ यह भी ध्यान रखना है की वादपत्र का नामंजूर किया जाना उसी वाद-हेतुक पर पुनः वाद संस्थित करने से वादी को निवारित नहीं करता ,लेकिन ऐसा वाद परिसीमा के अधीन होगा। इस बावत आदेश - 7 नियम-13 सिविल प्रक्रिया संहिता में प्रावधान किये गए है। 

क्या वादपत्र का ख़ारिज किया जाना अपीलीय है - 

               सिविल प्रक्रिया संहिता  की धारा-2 (2) में प्रावधानित किया गया है की वादपत्र का ख़ारिज किया जाना एक प्रतीकात्मक डिक्री है। अतः वादपत्र के ख़ारिज किये जाने के आदेश के विरुद अपील पोषणीय होगी। इसका अभिप्राय यह है की उक्त आदेश के विरुद निगरानी पोषणीय नहीं है। इस हेतु देखें अधोलिखित नजीरें -
1 - Meera vs Girja -AIR 2009 PAT   19.
2- Sonama vs Urmila -AIR 2009 PAT 71.

क्या वादपत्र अंशतः ख़ारिज किया जा सकता है-

               जब हम व्यावहारिक रूप से न्यायालय में काम करते हैं तो यह समस्या हमारे समक्ष आती है कि क्या वादपत्र आंशिक रूप से ख़ारिज किया जा सकता है? इसका उत्तर नकारात्मक है क्योंकि वाद-हेतुकों तथा पक्षकारों के कुसंयोजन के आधार पर वादपत्र आंशिक रूप से ख़ारिज नहीं किया जा सकता। यहाँ पर आदेश-6 नियम-16 के तहत न्यायालय द्वारा आदेश निर्गत किये जा सकते है। यहाँ पर आदेश-1 व 2 के प्रावधानों को ध्यान में रखा जायेगा।  माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Roop Lal vs Nachhattar Singh Gill-(1982) 3 SCC 487. प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि "Only a part of the plaint can not be rejected and no cause of action is disclosed ,the plaint as a whole must be rejected ."
            माननीय छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने Satyendra vs Hemlata- AIR 2009 Chhat 3. प्रकरण में यह अभिकथित किया है कि "Plaint can not be rejected as a whole when one or some of them are presumably barred while the other is maintainable ."

निष्कर्ष -                                                                    उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वादपत्र वाद की कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम पर ख़ारिज किया जा सकता है ,इस स्तर पर वादपत्र के अभिकथनों को ही देखा जाना है ,प्रतिवादी की प्रतिरक्षा विचार में नहीं ली जा सकती है। न्यायालय स्वतः संज्ञान लेकर वादपत्र ख़ारिज कर सकता है। इस प्रावधान का उद्देश्य फर्जी व बोगस वादों को प्राम्भिक स्तर  पर ही रोक दिया जाये ,जिससे वादों की बहुलता को रोका जा सके तथा राज्य के संसाधनों का दुरूपयोग रोका जा सके। उक्त लेख में यद्यपि कि सभी संभावित प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयत्न किया है, फिर भी पाठकों के सुझाव आमंत्रित हैं।                

सन्दर्भ -

1- AIR Journal .
2- SCC Journal.
3- RD Journal.
4- CPC By C K Takwani.
5- CPC Bare Act.
6- CPC Mulla 17th Edition volume-2
7- Nandi Civil Ready Referencer volume-1
8- kanoon.com
9- Live Law.com

---------------------------------------------------------------

 

 

  




                   
 
 
              

Sunday, May 10, 2020

Return of the plaint






RETURN OF THE PLAINT - 

( वादपत्र का लौटाया जाना )       

(By- 1. Vandana Singh Katiyar & 

               2.Vijay Kumar Katiyar


 भूमिका -
              
 वादपत्र का लौटाया जाना एक आवश्यक अवधारणा है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश -7 नियम-10 में वादपत्र के लौटाए जाने का प्रावधान किया गया है। ऐसे वाद जो सदभाव पूर्वक संस्थित किये गए हैं , लेकिन गलत न्यायालय में दायर कर दिए गए हैं ,या दायर तो सही न्यायालय में किये गए थे लेकिन मूल्यांकन में अभिवृद्धि अथवा किसी विधि की वर्जना के कारण ऐसे न्यायालय को वाद के विचारण का क्षेत्राधिकार नहीं रह गया है तो ऐसे में उक्त वादपत्र वापस कर दिया जायेगा ,उस न्यायालय में दाखिल करनें के लिए जिसे ऐसे वाद के विचारण का क्षेत्राधिकार प्राप्त है। इस प्रावधान के पीछे उद्देश्य यह है कि यथाशीघ्र ऐसे वादपत्र वापस कर दिए जाएँ जिससे पक्षकारों के साथ न्याय हो सके ,न्यायालय का समय बचे और यह राज्य के भी हित में है।

विधिक प्रावधान ---

             आदेश -7 नियम -10  सिविल प्रक्रिया संहिता यह प्रावधानित करती है कि  नियम 10 क  के उपबन्धों के अधीन रहते हुए वादपत्र वाद के किसी भी स्तर पर ,उस  न्यायालय में  उपस्थित किये  जाने के लिए लौटा दिया जायेगा जिसमें वाद संस्थित किया जाना चाहिए था। 
        स्पष्टीकरण - शंकाओं को दूर करने के लिए इसके द्वारा यह घोषित किया जाता है कि अपील व पुनरीक्षण न्यायालय ,वाद में पारित डिक्री को अपास्त करनें के पश्चात ,इस नियम के अधीन वादपत्र के लौटाए जानें का निदेश दे सकेगा। 
          उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि वादपत्र वाद के किसी भी प्रक्रम पर  लौटाया जा सकेगा ,इसका अभिप्राय यह है कि निर्णय पारित करनें के पूर्व किसी भी समय ऐसा वादपत्र लौटाया जा सकेगा ,अपीलीय व् निगरानी न्यायलय के आलोक में डिक्री अपास्त किये जानें के पश्चात वादपत्र लौटाया जा सकेगा। अब विचारणीय प्रश्न यह है कि वादपत्र आखिर लौटाया क्यों जायेगा ? नियम 10 के पठन से यह स्पष्ट हो जाता है की वाद उस न्यायालय को लौटा दिया जायेगा जिसमें वाद संस्थित होना चाहिए था ,इसका अभिप्राय यह है कि किसी कारणवश वाद के विचराण का क्षेत्राधिकार उस न्यायालय को नहीं है जिसमें ऐसा वाद लम्बित है , ऐसा दो कारणों से हो सकता है। पहला कारण यह हो सकता है की उस न्यायालय को  स्थानीय क्षेत्राधिकार प्राप्त न हो तथा दूसरा कारण  यह हो सकता है की उस न्यायायलय को आर्थिक क्षेत्राधिकार प्राप्त न हो। ऐसा वादपत्र में संशोधन द्वारा अथवा किसी विधि में परिवर्तन के द्वारा संभव है। प्रतिमानस्वरूप यदि किसी वाद के मूल्यांकन में वृद्धि हो जाती है अथवा सद्भावपूर्ण तरीके से वाद गलत फोरम में दाखिल कर दिया जाता है। माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने Begum Sahiba vs Nawab Mohd . Mansur Ali-(2007)4 SCC 343 प्रकरण में यह प्रतिपादित किया है कि इस स्तर पर वादपत्र तथा उसके अभिकथनों को देखा जाना है ,वादपत्र के प्रस्तरों का  संयुक्त पठन इस स्तर पर किया जायेगा तथा इस स्तर  वादपत्र का सार्थक पठन किया जायेगा न की औपचारिक पठन। यहाँ यह भी ध्यान रखना होगा कि यदि किसी वाद में वाद का मूल्यांकन बढ़ता है तो पहले संशोधन प्रार्थनापत्र स्वीकार करना होगा ,लेकिन यहां यह ध्यान रहे न्याय शुल्क की मांग न्यायालय द्वारा नहीं की जाएगी बल्कि वादपत्र लौटा दिया जायेगा। 

 वादपत्र लौटाए जानें की प्रक्रिया-

                   आदेश-7 नियम-10 का उपनियम-2 जा0 दी0 वादपत्र लौटाए जाने  प्रक्रिया का प्रावधान करती है यथा-न्यायाधीश वादपत्र के लौटाए जाने पर ,उस पर उसके उपस्थित किये जाने व लौटाए जानें की तारीख ,उपस्थित करने वाले पक्षकार का नाम और उसके लौटाए जाने जे कारणों का संक्षिप्त कथन पृष्ठांकित करेगा। जज को यहां पर यह ध्यान रखना होगा कि वादपत्र के लौटाए जानें का स्पष्ट आदेश आदेशपत्रक पर पारित करना होगा इसके पश्चात वादपत्र पर उपनियम -2 के अनुरूप पृष्ठांकन करना होगा ,यह पृष्ठांकन आज्ञापक है।                          

क्या न्यायालय वादपत्र लौटाए जानें की पश्चात पक्षकारों की उपसंजाति के लिए तारीख नियत कर सकती है -

                   इसी आदेश के नियम -10 क व 10 ख सिविल प्रक्रिया संहिता में इसका प्रावधान किया गया है कि यदि न्यायालय की यह राय कि वादपत्र लौटाया जाना चाहिए तो वह अपनें विनिश्चय की सूचना वादी को देगा। यदि किसी वाद में प्रतिवादी उपस्थित आ गया है और वादी लिखित में न्यायालय से निवेदन करता है की वादपत्र लौटाए जानें के पश्चात उस न्यायालय में उपसंजात होने की तारीख नियत कर दे ,तो ऐसी स्थिति न्यायालय तारीख निश्चित करेगा । यहां यह ध्यान रहे यदि  वादी के आवेदन पर ऐसी तारीख नियत कर दी गयी है तो वादी वादपत्र लौटाए जाने के आदेश के विरूद्व अपील नहीं कर सकेगा साथ ही उस न्यायालय द्वारा जिसमें वादपत्र  लौटाए जाने के पश्चात संस्थित किया गया है , को प्रतिवादी को समन भेजे जाने की आवश्यकता नहीं है, यदि उक्त न्यायालय इसके वावजूद समन भेजना चाहता है तो उसको अपने आदेश में इसके कारण उल्लिखित करनें होंगे। दूसरी तरफ उक्त अधिकारिता अपीलीय व निगरानी न्यायालयों को भी है प्राप्त है। 

वादपत्र लौटाए जानें का परिणाम -

                                   जैसा कि विदित है ज्यों ही न्यायालय द्वारा वादपत्र लौटा दिया जाता है उस न्यायालय को जिसनें वादपत्र वापस किया है उसे कोई अधिकारिता ऐसे वादपत्र पर नहीं रह जाती है। जहाँ तक उस न्यायालय को जिसे ऐसा वादपत्र प्राप्त हुआ है उसे समस्त अधिकारिताएं वाद के विचारण की प्राप्त हो जाती हैं। वादविवाद का प्रश्न यह है कि क्या ऐसा न्यायालय वाद का निस्तारण नए तरीके से  करेगा अथवा उस स्तर से करेगा जिस स्तर से उसे वादपत्र प्राप्त हुआ है। इस सम्बन्ध में सामान्य सिद्धांत यह है कि वाद की परिसीमा ,मूल्यांकन तथा न्यायशुल्क के अधीन रहते हुए वाद का विचारण नए सिरे से करेगा। इसका अभिप्राय यह है कि धारा -14 म्याद अधिनियम का लाभ वादी को प्राप्त होगा तथा उसके द्वारा जो न्यायशुल्क उसके द्वारा अदा किया जा चुका उसे पुनः अदा नहीं करना होगा। अधोलिखित नजीरों में उक्त तथ्यों का समर्थन किया गया है --
  1. Ram Dutt Ramkissen Dass vs E.D.Sesson and co.-AIR 1929 PC 103
  2. Harshad Chiman Lal Modi vs D.L.F. Universal ltd-AIR 2006 SC 646.
  3. Amar Chand Inani vs Union of India-(1973)1 SCC 115.
  4. ONGC Ltd vs M/S Modern Construction and co.-civil appeal no-8957,8958/2013 SC, Judgement dated 07/10/2013
                      इस सम्बन्ध में एक भिन्न मत भी है जिसमें माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि न्याय के उद्देश्यों की विफलता को निवारित करने के लिए पश्चातवर्ती न्यायालय को उस स्तर से  विचारित किये जानें का जिस स्तर पर पूर्ववर्ती न्यायालय में वाद लंबित था , यदि कोई निर्देश किसी न्यायालय द्वारा इस बावत दिया गया है तो ऐसा आदेश उचित आदेश माना जायेगा। Joginder tuli vs Bhatia and another -(1997)1 SCC 502 में उक्त तथ्य का समर्थन किया गया है। इस प्रकरण में माननीय उच्चत्तम न्यायालय ने यह अभिकथित किया है कि "Normaly when plaint is directed to be returned for presentation to the proper court perhaps it has to be start from the beginning but in this case since evidence was adduced by the parties ,the matter was tried accordingly, the high court has directed to proceed from that stage at which the suit stood transfered ,     thre is no illegality ."
क्या वादपत्र आंशिक रूप से लौटाया जा सकता है -                     
जैसा की विदित है कुछ वादों में वादहेतुकों व पक्षकारों के कुसंयोंजन के चलते वाद के कुछ हिस्से के विचारण का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है अथवा कुछ प्रतिवादियों के विरुद्व न्यायालय को विचारण का अधिकार नहीं होता है तो ऐसे में क्या संपूर्ण वादपत्र वापस कर दिया जायेगा अथवा आंशिक रूप से वाद वापस कर दिया जायेगा या न्यायालय के पास कोई और विकल्प है। यद्यपि कि इस सम्बन्ध में माननीय उच्च न्यायालयों में मतभेद रहे हैं। इस आलोक में दिल्ली उच्च न्यायालय तथा माननीय उच्चत्तम न्यायालय के अभिमत उचित प्रतीत होते हैं जिसमें यह मत व्यक्त किये गए है की वादपत्र के उतने भाग को कटे जानें का आदेश पारित किया जायेगा और तदनुसार वादपत्र के शेष भाग का विचारण विधिनुसार न्यायालय द्वारा किया जायेगा। ये नजीरें इस प्रकार हैं ---                  
1-State Bank vs Sanjiv Malik-AIR  1996 DEL. 284.  
2-Dodha House vs S.K. Maingi-AIR 2006 SC 730.                                      
जैसा कि विदित है आदेश- 6 नियम 16 जा0 दी0 में न्यायालय को अभिवचनों के काटे जानें का आदेश दिए जानें की अधिकारिता प्राप्त है। इस उपवन्ध के तहत न्यायालय प्लीडिंग को स्ट्राईक ऑफ करने का आदेश पारित कर सकता है।                                    
क्या लौटाए गए वादपत्र में संशोधन किये जा सकते हैं - 

यहां पर यह प्रश्न भी विचारणीय है कि क्या वादपत्र जो वापस कर दिया गया है उसमें वादपत्र पुनः संस्थित किये जाने के पूर्व संशोधन किये जा सकते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर सकारात्मक है अर्थात बिना न्यायालय की अनुज्ञा के पुनः वादपत्र दायर किये जानें के पूर्व वादी द्वारा संशोधन किये जा सकते हैं,लेकिन ऐसा वादपत्र नवीन वादपत्र माना जायेगा शिवाय परिसीमा विधि , आर्थिक क्षेत्राधिकार व  कोर्ट  शुल्क के   तथ्य के। माननीय उच्चत्तम न्यायालय नें Hanamanthappa vs Chandrashekharappa-AIR 1997 SC 1307. में उपर्युक्त तथ्यों का समर्थन किया है। और अभिकथित किया है कि "Plaintiff entitled to re-present plaint after its return,before proper court after necessary amendment without seeking court's permission for amendment ; plaint to be treated a fresh plaint ,subject to limitation,pecuniary jurisdiction and payment of court fee."                     
यहां यह ध्यान रखना है कि यदि प्रतिवादी उपस्थित आ चुका है और उसकी तरफ से लिखित दाखिल किया जा चुका है तो ऐसी स्थिति में प्रतिवादी के पास यह विकल्प रहेगा की वह चाहे तो उसी लिखित उत्तर पर बल दे या नया  उत्तर दाखिल करे।                               
क्या अस्थायी निषेधाज्ञा अथवा अन्य अंतरिम आदेश प्रभावी रहेंगे
 जैसा की यह स्थापित सिद्धांत है कई कि जब वादपत्र लौटा दिया जाता है तो उस वादपत्र का विचारण डी नोवो किया जायेगा इसका अभिप्राय यह है कि समस्त अंतरिम आदेश निष्प्रभावी हों जायेंगे जैसे ही वादपत्र वापस कर दिया जायेगा ,लेकिन यहां यह ध्यान रहे वादपत्र का पुनः संस्थित किया जाना परिसीमा अधिनियम , आर्थिक क्षेत्राधिकार तथा न्यायशुल्क की अदायगी के अधीन रहेगा अर्थात उक्त तीन तथ्यों को छोड़कर वादपत्र का पुनः विचारण DE NOVO किया जायेगा। इस संबंध में अधोलिखित नजीरें देखें -     
1. Harshad Chiman Lal Modi vs D.L.F. Universal ltd-AIR 2006 SC 646.
2. Amar Chand Inani vs Union of India-(1973)1 SCC 115.
3. ONGC Ltd vs M/S Modern Construction and co.-civil appeal no-8957,8958/2013 SC, Judgement dated 07/10/2013.

    धारा -24 सी पी सी बनाम आदेश -7 नियम -10 -       


    अब विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या उपर्युक्त दोनों प्रावधान विरोधाभाषी हैं अथवा दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं ? धारा -24 माननीय उच्च न्यायालय व जिला न्यायालय को किसी भी प्रक्रम पर वाद के अंतरण की अधिकारिता प्रदान की गयी है। उक्त धारा-24 (5 ) यह प्रावधानित करता है कि कोई वाद या कार्यवाही उस न्यायालय से इस धारा के अधीन अंतरित की जा सकेगी जिसे उसका विचारण की अधिकारिता नहीं है। उदाहरणस्वरूप -एक वाद के विचारण का अधिकार एक न्यायालय  को प्राप्त नहीं है ,दूसरा न्यायालय जिसे विचारण की अधिकारिता है तथा उक्त न्यायालय उसी जनपद के उसी परिसर में स्थित है और जनपद न्यायालय के द्वारा इस धारा के अधीन अंतरण किया गया है तो इसमें कोई अवैधानिकता नहीं है क्योंकि उक्त धारा का खण्ड-5 न्यायालय को अधिकार प्रदान करता है,लेकिन यदि उक्त न्यायालय जिसमें पुनः वादपत्र संस्थित किया जाना है जनपद के बाहर है या फोरम में समानता नहीं है तो वहां पर धारा -24 लागु नहीं होगी वरन आदेश -7 नियम 10 के प्रावधान लागु होंगे। इसलिए यहां स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि दोनों प्रावधानों में विरोधाभाष नहीं है बल्कि परस्पर पूरक हैं। 

    व्यावहारिक रूप से क्या लौटाया जायेगा -

                      एक व्यावहारिक समस्या आपके समक्ष यह आ सकती है की जब वादपत्र लौटाया जाये तो उसके साथ क्या -क्या लौटाया जाये। मूल वादपत्र ,शपथपत्र असल ,टी आई प्रार्थनापत्र शपथपत्र सहित ,बयान तहरीरी शपथपत्र सहित , टी आई के विरुद आपत्ति शपथपत्र सहित ,दोनों पक्षों के ओर से दाखिल समस्त दस्तावेज  प्रतियां वापस कर दी जाएँगी। यहाँ यह ध्यान रखना होगा की उक्त प्रपत्रों के साथ आदेशपत्रक की प्रमाणित प्रतियां भी भेजीं जाएँगी। इसका अभिप्राय यह है की आदेशपत्रक की असल प्रतियां नहीं भेजीं जाएँगी। यहाँ यह भी ध्यान रखना आवश्यक है की समस्त प्रपत्रों की छायाप्रतियां पत्रावली पर रखी जाएँगी और उक्त  पत्रावली नियमानुसार दाखिल अभिलेखगार की जाएगी।                      

    निष्कर्ष - 

    जैसा कि उपर्युक्त विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि आर्थिक या स्थानीय क्षेत्राधिकार के आभाव में वादपत्र लौटा दिया जायेगा ,जानबूझकर यहाँ पर विषयवस्तु के क्षेत्राधिकार की चर्चा नहीं की गयी है क्योंकि इसकी चर्चा वादपत्र के नामंजूर किये जानें वाले लेख में की जाएगी। 

    -----------------------------------------------

                                                  

                                                    
                           

                              
                    

    Law of adverse possession

    Book Review

      Book Review By- Vijay Kumar Katiyar Addl. District & Sessions Judge Basti Uttar Pradesh, India Title of the book              ...